जानिए जन्म कुंडली में वेश्यावृति के योग


प्रिय दर्शकों/पाठकों, ज्योतिष एक अथाह सागर है जो जीवन के हर पहलू पर रोशनी डालता है| एक अच्छे ज्योतिष विद्यार्थी को ज्योतिष की सभी शाखाओं को सीखना चाहिए और अपने अनुभव से उनका प्रयोग कुंडली पर करना चाहिए|

हमारे समाज का बेहद कड़वा सच है वैश्‍यावृत्ति। कहीं देह व्‍यापार को कानूनी मान्‍यता प्राप्‍त है तो कहीं ये काम कानून के नियमों का उल्‍लंघन माना जाता है। कानून के प्रतिबंध के बावजूद भी वैश्‍यावृत्ति का व्‍यापार सभी जगह खूब फलता-फूलता है। इसी प्रकार क्‍या आपने कभी सोचा है कि ग्रहों की दशा का प्रभाव भी महिलाओं के देह व्‍यापार के दलदल में फंसने का एक महत्‍वपूर्ण कारण है। हमारे समाज में सबसे घृणित कार्यों में से एक माना जाता है वेश्यावृत्ति। अक्सर इसके पीछे कई मजबूरियां होती हैं जब कोई लड़की हवस के सौदागारों को अपना जिस्म बेचने के लिए तैयार होती है। अगर प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन किया जाए तो मालूम होता है कि इसका इतिहास बहुत पुराना है। आचार्य चाणक्य ने भी अपने ग्रंथ में इसका उल्लेख किया है। दुनिया का शायद ही कोई देश हो जहां वेश्यावृत्ति न हो। कुछ देशों में इसे कानूनी मान्यता है और वहां वेश्याओं के संबंध में लोगों का नजरिया थोड़ा अलग है। वहीं ज्यादातर देशों में इसे बेहद घृणित माना जाता है और इस पर पाबंदी है। जन्म कुंडली में बनने वाले हर योग का कोई न कोई प्रभाव हमारे जीवन पर जरुर होता है। ग्रहों की चाल लोगों को गलत के साथ-साथ अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है। मंगल और शुक्र ऐसे दो ग्रह है, जब इनकी युति बनती है तो वैवाहिक जीवन तो डिस्टर्ब होता ही है, साथ ही गैर महिला के प्रति पुरुषों का आकर्षण बढ़ता है। कभी-कभी तो स्थिति ये हो जाती है कि जातक सेक्स पर बेतहाशा रुपया खर्च करने को तैयार रहता है।

चूंकि वेश्यावृत्ति का इतिहास बहुत पुराना रहा है, इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी इसका उल्लेख आता है। इसके मुताबिक, कुंडली में ग्रहों का खास योग किसी महिला को वेश्यावृत्ति की ओर धकेल सकता है। यही नहीं, ऐसे ज्यादातर मामलों में महिला को उसके प्रेमी द्वारा बहला-फुसलाकर देह व्यापार के गंदे धंधे में धकेल दिया जाता है। इसलिए जिसकी कुंडली में ऐसा योग हो, उसे प्रेम प्रसंग और धोखेबाज प्रेमी से बचना चाहिए।
जी हां, महिलाओं के व्‍यापार में फंसने का ज्‍योतिषीय कारण होता है। ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति में महिलाएं देह व्‍यापार करने पर मजबूर हो जाती हैं।

—जिस युवक / युवती की कुंडली में चौथे भाव में शुक्र तथा मंगल इकट्ठे होंगे , तो वह अत्यधिक कामुक ( sexy ) होगा । किसी नजदीकी सम्बन्धी से सेक्स सम्बन्ध होने के कारण उसका अपना ग्रहस्थ जीवन डावांडोल होता है । लेकिन ऐसा वयक्ति घर में ध्यान न दे बाहर ही अपने आमोद प्रमोद में मगन रहेगा , ऐसा जानना चाहिए । चतुर्थ भाव सुख स्थान का है ।
—-जिसकी कुंडली में चौथे भाव में पाप ग्रह हों , वह रोमांस करने वाला ( mood ) होता है ।
—चतुर्थ भाव आचरण दर्शाता है और जब सुखों में भारी विघ्न पड़े , तो उसमे प्रमुखत: मुख्य स्थान चतुर्थ भाव का होता है ।
—चतुर्थ में पाप ग्रह होना अन्य जगह ( सेक्स ) सम्बन्ध होना कारण है ।
—–जातक/जातिका की कुंडली में गुरु और शुक्र समसप्तक हो तो भी वे अतिकामुक योग है, और ये योग वैवाहिक जीवन married life के निजी सुखो personal relationship में वृद्धि करता है। जातक के मामले में यदि मंगल और शुक्र समसप्तक हो तो ये योग की सार्थकता सिद्ध होती है।
—धनु , मीन लग्न वाले स्त्री पुरुषों को शय्या सुख अन्यत्र खोजने की आवश्यकता पड़ती है ।
—किसी भी जातक की लग्न कुंडली में मंगल+शुक्र की युति काम वासना को उग्र कर देती है, जन्म के ग्रह जन्मजात प्रवृति की ओर इशारा करते हैं, और वह जातक इस के प्रभाव से आजीवन प्रभावित-संचालित होता है। किसी व्यक्ति में इस भावना का प्रतिशत कम हो सकता है, और किसी में ज्यादा हो सकता है।
—–यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र /त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली , विद्या -प्रिय ,कर्म शील , दानी , यशस्वी , घर जमीन का अधिपति होता है, वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है ।
—यदि लग्न का स्वामी बारहवें भाव में हो तथा बारहवें भाव का स्वामी लग्न में हो , तो ऐसे कुंडली वालर चाहे युवक हो या युवती अत्यंत सेक्सी प्रवर्ति के होते हैं । क्योंकि द्वादश भाव दूसरी स्त्री के सेक्स सुख का भी स्थान कहलाता है । जैसे शरीर होता है , तो वह मुख्य है । पर इसके अंदर जो प्राण हैं , वह जीव है , वह अत्यंत प्रमुख होता है । इसी तारतम्य को शुद्धतापूर्वक परीक्षण करने हेतु जन्म कुंडली होती है ।
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मंगल-शुक्र का प्रभाव
मंगल व्यक्तित्व का और शुक्र प्यार का ग्रह है। जब दोनों की युति होती है तो रिलेशनशिप में प्रॉब्लम की संभावना हो जाती है। मंगल, अग्नि और शुक्र, जल का कारक है, यानि सौम्यता में अग्नि के मिलन से शुक्र के कारक तत्व में उछाल आता है। मंगल विल पॉवर है जो हमारे अंदर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है। यह बहुत आवेगपूर्ण भी होता है। गुस्से को बढ़ाता है। यह सेक्सुअल एनर्जी, फिजीकली एनर्जी को रिप्रजेंट करता है।
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हैप्पीनेस को प्रजेंट करता है शुक्र
शुक्र के पास रिश्तों को निभाने और समझौता कराने की क्षमता होती है। शुक्र पेशंस, हैप्पीनेस और कल को प्रजेंट करता है। शुक्र भोग गृहस्थी, सुंदरता और सौम्यता का कारक है। दोनों की युति में जातक के अंदर अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण रहता है और रिलेशनशिप में स्ट्रॉंग सेक्सुअल संबंध चाहता है। ऐसे जातक दूसरों की तरफ जल्दी आकर्षित होने वाला धूर्त, चालाक भी हो सकता है।
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आइए जानते हैं कि ग्रहों की किस स्थिति में स्‍त्री को वेश्‍या बनना पड़ता है -:

– यदि किसी महिला की कुंडली में सातवें, आठवें और दसवें घर में बुध या शुक्र ग्रह विराजमान हों तो ऐसी स्थिति में उस स्‍त्री के वैश्‍यावृत्ति के व्‍यापार में आने के योग बनते हैं।
– वैश्‍यावृत्ति के लिए शुक्र और मंगल अधिक प्रभावकारी और महत्‍वपूर्ण होते हैं। शुक्र और मंगल के दसवें और सातवें भाव में होने पर ऐसा होना संभव है।
—-जिस इंसान की कुडली मे चाहे वह महिला हो या पुरुष 7th भाव और 8th भाव मंगल + शुक् से संबंधित हो या मंगल लगन भाव में और चंद्रमा 7 th भाव में हो वह इंसान बहुत कामुक होता है इसके साथ राहु हो जाये मतलब दृष्टि -युती -nakshtr – भाव में तो porn पिक्चर का शौक होता है।
—इस संबंध में महिला की कुंडली के सातवें, आठवें और दसवें भाव का अध्ययन जरूर करना चाहिए।
—-ज्योतिष की मान्यता है कि यदि इन भावों में बुध अथवा शुक्र विराजमान हों तो इस बात की काफी संभावना होती है कि वह महिला वेश्यावृत्ति में चली जाए। खासतौर पर यदि शुक्र और मंगल कुंडली के सातवें अथवा दसवें भाव में विराजमान हों। यह योग अगर अन्य क्रूर ग्रहों की युति एवं दृष्टि से बने तो महिला का जीवन तबाह हो जाता है। उसे अपने जीवन का काफी समय वेश्यावृत्ति में बिताना पड़ता है।
—-उच्च का चंद्रमा प्रेम प्रसंग में सफलता प्रदान करता है लेकिन यही जब नीच राशि में स्थित होता है तो जीवन में कष्ट लेकर आता है।
—अगर महिला की कुंडली में नीच का चंद्रमा हो और अन्य ग्रह शुभ न हों तो वह भविष्य में देह व्यापार का मार्ग चुन लेती है। इस प्रकार शुक्र, मंगल और चंद्रमा का दोषपूर्ण संबंध महिला के जीवन की राह निर्धारित करता है।
—-तुला राशि में चन्द्रमा और शुक्र की युति जातक की काम वासना को कई गुणा बड़ा देती है । अगर इस युति पर राहु/मंगल की दृष्टि भी तो जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
—शनि और राहु का संबंध ज्योतिष शास्त्र में अच्छा नहीं माना जाता। यह महिलाओं के लिए बहुत कष्टपूर्ण होता है। इन दोनों ग्रहों का संबंध वेश्यावृत्ति का योग बनाता है।
–इसी प्रकार अष्टम में शुक्र या शनि, शुक्र व मंगल की युति किसी महिला के जीवन का कड़ा इम्तिहान लेती है और उसे देह व्यापार में धकेल देती है। शुक्र और राहु का योग भी वेश्यावृत्ति के लिए जिम्मेदार होता है।
– किसी महिला की कुंडली में शुक्र और मंगल का आपस में संबंध हो अथवा यह दोनों ग्रह पीडित हों।
– कुंडली में चंद्रमा ग्रह नीच स्‍थान में अथवा पीडित हो तो भी स्‍त्री के देह व्‍यापार में आने की संभावना प्रबल हो जाती है।
– शुक्र ग्रह का अष्‍टम भाव में होना, शनि-शुक्र की युति होना और शनि, शुक्र और मंगल की युति होने पर।
– जिस स्‍त्री की कुंडली में शुक्र और राहु की युति बन रही हो उसके देह व्‍यापार से जुड़ने की संभावना रहती है।
– कुंडली में अष्‍टमेश का प्रबल होना, चंद्रमा बारहवें भाव में उपस्थि‍त होना एवं दशम भाव में राहु का उपस्थित होना बहुत ज्‍यादा खराब स्थिति को दर्शाता है।
– शनि और राहु के संबंध में भी वैश्‍यावृत्ति के योग बनते हैं।
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नवांश कुंडली और अवैध सम्बन्ध–

ज्योतिष एक अथाह सागर है जो जीवन के हर पहलू पर रोशनी डालता है| एक अच्छे ज्योतिष विद्यार्थी को ज्योतिष की सभी शाखाओं को सीखना चाहिए और अपने अनुभव से उनका प्रयोग कुंडली पर करना चाहिए| पाराशर ज्योतिष के अनुसार कुंडली देखते समय जन्म कुंडली,वर्ग कुंडली, दशा, नक्षत्र और गोचर का विश्लेषण जरूरी होता है| सभी वर्गों में नवांश को अत्यधिक महत्ता दी गई है इसी वजह से आज का यह लेख नवांश पर आधारित है कि किस प्रकार नवांश कुंडली से आप अपने और अपने जीवनसाथी के बीच अंतरंग संबंधों को देख सकते है |

मनुष्य के जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जहाँ उसे नैतिक और अनैतिक में से एक का वरन करना होता है और इस कलयुग में मनुष्य की लिप्सा और तृष्णा का कोई अंत नहीं है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष.

आज के समय में किसी को अच्छे बुरे की परवाह नहीं है और सभी लोग अंधों की तरह अपने स्वार्थों की पूर्ती करने में लगे हुए हैं. हम रोज़ ही अखबारों में पढ़ते रहते हैं की फलां स्त्री का अनैतिक यौन समबन्धों के कारण क़त्ल हो गया, फलां के साथ वैसा हो गया.

आजकल स्वाप्पिंग का चलन भी बहुत हो चुका है और हमारे जाने बिना यह बढ़ता ही जा रहा है. कॉलसेंटर कल्चर ने भी स्त्री पुरुष के विवाह पूर्व और विवाहेतर समबन्धों को बढाने में बहुत योगदान दिया है. इन्हीं सब कारणों के चलते विवाह नाम की क्रिया और परिवार नाम का संस्थान बहुत अन्धकार में जा चूका है. यहाँ तक की बड़े परिवारों में रक्त सम्बंधोयों के मध्य ही यौन सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं और किसी को पता नहीं चलता. जब तक पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है.

पंचम भाव और पंचम का उपनक्ष्त्र स्वामी विवाह पूर्व प्रेम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध आदि के होते है अन्य बातों के अलावा, शुक्र काम का मुख्य करक गृह है और रोमांस प्रेम आदि पर इसका अधिपत्य है. मंगल व्यक्ति में पाशविकता और तीव्र कामना भर देता है और शनि गुप्त रास्तों से कामाग्नि की पूर्ती करने को प्रेरित करता है.

जैसा की ज्योतिष के सभी विधार्थियों को ज्ञात है कि सप्तम भाव, सप्तम भाव का स्वामी और शुक्र से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है| इन भावों के अलावा द्वादश भाव कामुक संबंधों के लिए, दूसरा भाव कुटुंब के लिए, चौथा भाव परिवार के लिए भी देखे जाते है | यदि इन भावों का संबंध या इनके स्वामियों का संबंध मंगल, शनि, राहु एवं केतु से हो तो वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता है|

कामवासना बढ़ाने में द्वादश भाव के स्वामी का मुख्य रोल होता है अगर इस का स्वामी सप्तम भाव में आए या लग्न में आजाये और वह मुख्यत: शुक्र या मंगल हो, ऐसा जातक स्वभाव से लंपट और बहुत सारी स्त्रियों से रिश्ता रखता है 4 7 या 12वे में हो, अथवा ईन दोनों ग्रहों का संबंध बन रहा हो तो, यह जातक के अत्यंत कामी sexy होने का संकेत है। ये ग्रह अधिक बलवान हों तो, जातक समय और दिन-रात की मर्यादा भूलकर सदैव सेक्स sex को आतुर रहता है। मंगल जोश है, और शुक्र भोग अतः इन दोनों की युति होने पर अधिकांश कुंडलियों में ये प्रभाव सही पाया गया है। ये बात वैध और अवैध दोनों संबंधो पर लागू होती है।

यदि शुक्र मेष,सिंह, धनु, वृश्चिक में हो या नीच का हो और मंगल राहु केतु या शनि के साथ हो तो यह व्यक्ति में अत्यधिक सेक्स इच्छा दर्शाते है | कई बार व्यक्ति विवाह की मर्यादा को तोड़कर विवाह के बाद बाहर ही संबंध बनाता है निश्चय ही यह अच्छी बात नहीं है परंतु ऐसे कौन से योग है जिसके कारण व्यक्ति भी इस तरह की इच्छा उत्पन्न होती है आइए जानते हैं की ज्योतिष ग्रंथों में इसके बारे में क्या बताया गया है| विवाह से बाहर शारीरिक संबंध बनाने के लिए पहले तो व्यक्ति बौद्धिक रूप से तैयार होना चाहिए उसकी बुद्धि ऐसी होनी चाहिए जो उसको इस ओर धकेल रही हो |पंचम भाव और चंद्रमा दर्शाता है कि व्यक्ति की सोच क्या है तो यदि आपकी कुंडली में पंचम भाव पर मंगल, शनि, राहु का प्रभाव है और चंद्रमा भी पीड़ित है तो ऐसी सोच उत्पन्न होती है| यही योग यदि नवांश में बन जाए तो वह इस तरह की सोच पर मोहर लगा देते हैं|

अब बात करते हैं ऐसे कुछ लोगों की जो ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में दिए हुए है |

नवांश कुंडली में शनि शुक्र की राशि में और शुक्र शनि की राशि में हो तो महिला की शारीरिक भूख अधिक होती है|

नवांश कुंडली में शुक्र मंगल की राशि में हो और मंगल शुक्र की राशि में तो व्यक्ति अपने जीवनसाथी के अलावा बाहर शारीरिक संबंध बनाने में नहीं हिचकिचाते है|

शुक्र मंगल आत्मकारक की नवांश राशि से बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|

केतु आत्मकारक की नवांश राशि से नवम भाव में हो तो वृद्धावस्था तक भी व्यक्ति पर पुरुष या पर स्त्री के बारे में सोचता रहता है|

शुक्र सभी वर्गों में केवल मंगल या शनि की राशियों में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|

यदि शुक्र पर मंगल की द्रष्टि हो , दोनों गृह एक दुसरे की राशियों में हो तो व्यक्ति का अपनी बहिन या भाई या रक्त सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित होता है. और साथ ही यदि शुक्र के साथ चन्द्रमा हो – पुरुष की कुंडली में , तो वह अपनी बहिन या अन्य निकट सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित करता है. यदि वही शुक्र गुरु के साथ हो स्त्री की कुंडली में तो वह अपने भाई या अन्य निकट सम्बन्धियों से सम्बन्ध स्थापित करती है.

शुक्र पर शनि की द्रष्टि अथवा शनि शुक्र के मध्य नक्षत्र परिवर्तन हो तो वह सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध दर्शाता है.स्त्री की कुंडली में यह पुत्र अथवा दामाद से सम्बन्ध दर्शाता है और यदि सूर्य की जगह चन्द्र हो और शुक्र मंगल सूर्य के पहले हों तो यह पुरुष की कुंडली में पुत्री अथवा बहु और स्त्री की कुंडली में पिता, चाचा अथवा अन्य सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध प्रदर्शित करता है .

नवांश कुंडली में चंद्रमा के दोनों ओर शनि और मंगल हो तो पति-पत्नी दोनों ही व्याभिचार करते हैं|

जन्म कुंडली का सप्तम का स्वामी नवांश कुंडली में बुद्ध की राशि में बैठा हो और बुध उसे देख ले तो आपका जीवन साथी द्विअर्थी बातें करते हैं और लोगों को रिझाने का काम करते हैं|

जैसा की आप सबको भी ज्ञात होगा कि पंचम और सप्तम भाव से संतान प्राप्ति देखते हैं| यदि दोनों का संबंध छठे भाव से हो जाए तो व्यक्ति विशेष में प्रजनन शक्ति कम होती है| जातक अलंकार के अनुसार यदि शुक्र मंगल की राशियों में हो तो वह अपने जीवनसाथी को सेक्स संबंधों में खुश नहीं रख पाता है| इसी तरह यदि शनि शुक्र का योग दशम भाव में हो तो व्यक्ति में नपुंसकता के योग होते हैं| संकेत निधि के अनुसार यदि शुक्र चंद्रमा की युति नवम भाव में हो तो ऐसे जातक की पत्नी कुटिल होती है|

कुंडली के चौथे भाव से व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जाता है और बार-बार सेक्स संबंधों में आपकी रुचि को दर्शाता है किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही इन दोनों भावों का गहन विश्लेषण आवश्यक है | हमारा आप सब से अनुरोध है कि यह नियम सीधे कुंडलियों पर ना लगाएं अपितु पूरी कुंडली का विश्लेषण करने के बाद ही इन लोगों को जांचे|

कुंडली का अष्टम भाव अन्य बातों के अलावा यौन संबंधों और क्रिया से सम्बन्ध रखता है.
यदि किसी व्यक्ति का १,५,११ भाव का सम्बन्ध मंगल शुक्र शनि से हो , वह स्वामित्व भी हो सकता है और राशी नक्षत्र और उपनक्ष्त्र के रूप में भी हो सकता है और मंगल शुक्र १ और ११ के कार्येष गृह हो सकते हैं जिन पर शनि की द्रष्टि पड़ रही हो तब निश्चित ही व्यक्ति के अन्दर , चाहे स्त्री हो या पुरुष , उन्मुक्तता की भावना रहेगी और दशा अंतर आने पर वह इन कृत्यों में लिप्त होकर ही रहेगा.

स्त्री की कुंडली
22-8-1962, doha, qatar.
यह एक अत्यधिक सुंदर स्त्री की कुंडली है जिसको १९ वर्ष में ही क़तर एयरलाइन्स में होस्टेस की नौकरी मिल गयी थी. एक यात्री को वह बहुत पसंद आ गयी और उसने इस महिला से शादी कर ली. वह व्यक्ति करोडपति है. बहुत साल की शादी के बाद दोनों का तलाक हो गया , इस स्त्री के एक २१ वर्षीय लड़के से अनैतिक सम्बन्ध था जिसके कारण उसने अपने पति को छोड़ दिया . वह लड़का उसके पुत्र का सहपाठी था. जब उस लड़के का मतलब निकल गया तो उसने इस स्त्री को छोड़ दिया. इस स्त्री के अनगिनत लोगों से सम्बन्ध रहे और इसने कभी भी उसको अनैतिक नहीं समझा. मैंने जब इसका हाथ देखा था तो मैंने इसको बता दिया था की इसका किसी बहुत मक आयु के पुरुष से प्रेम सम्बन्ध है और इसका तलाक होने वाला है . २००१ के बात है. यह अब बॉम्बे में किसी धनवान व्यक्ति के साथ गुजर बसर कर रही है.

प्रथम भाव शुक्र के नक्षत्र और शनि के उपनक्ष्त्र में है ,पंचम भाव भी शुक्र के नक्षत्र और शनि के उपनक्ष्त्र मैं है ,११वें भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी शनि है. शुक्र पर मंगल की द्रष्टि है.यह अत्यधिक मदिरा पान करती थी और अन्य नशों की भी इसको लत थी .

22-10-1968, पुरुष , 77E43-22N45
शुक्र स्वयं ही लग्न में है और मंगल से द्रष्ट है .शुक्र मंगल की राशि में है. ११वें भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी शुक्र है ,पंचम भाव शनि के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्ष्त्र में है ,अष्टम का उप्नाक्ष्त्र स्वामी लाभ में है , गुरु भी शनि के उपनक्ष्त्र में है. इस व्यक्ति को याद भी नहीं है की इसका कितनी महिलाओं से यौन सम्बन्ध रह चूका है.

पुरुष ,19-3-1973, 83E24, 21N54.
शनि लग्न में है और शुक्र पर द्रष्टि है , पंचम भाव शुक्र के नक्षत्र और मंगल के उपनक्ष्त्र में है. ११वे भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी सूर्य है जो शनि के नक्षत्र और उपनक्ष्त्र में है. सूर्य बुध शुक्र ११वे भाव में हैं. ये समाचार मीडिया के एक बहुत बड़े संस्थान में बहुत बड़े पद पर विराजमान है.इसके जीवन में कई इस प्रकार के सम्बन्ध रहे हैं.

20-3-1955,13:42:40.
शनि की मंगल और लग्न पर द्रष्टि है , शुक्र सप्तम में चन्द्र के साथ है ,शनि शुक्र के उपनक्ष्त्र में है, मंगल शनि के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्ष्त्र में है. इस जातक के कई देशी और विदेशी महिलाओं से शारीरिक सम्बन्ध रहे हैं. यह स्वयं बहुत ख्यति प्राप्त विद्वान् ज्योतिषी है.

कुण्डलियाँ बहुत दी जा सकती हैं मगर मुझे उम्मीद है की पाठक समझ गए होंगे की किन ग्रहों की युति द्रष्टि नक्षत्र आदि के कारण व्यक्ति इन सब कार्यों की ओर अग्रसर हो जाता है. दशा भुक्ति और अन्तर का इसमें सबसे बड़ा योगदान होता है क्योंकि ऐसे योग हो तो बहुत लोगों की कुंडली में सकते हैं मगर फलीभूत तभी होते हैं जब सही दशा मिल जाती है. गुरूजी कृष्णामूर्ति जी की पद्धति अचूक और सटीक है इसमें कोई दो मत नहीं है.
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कामुकता और ज्योतिष—-

मेरे जीवन साथी और मेरी काम इच्छाएं अलग अलग हैं मुझे क्या करना चाहिए ?

एक सर्वे के अनुसार 20% तलाक का कारण पति पत्नी में काम इच्छाओ का अलग होना है| यह एक ऐसा विषय है जिस पर चर्चा करना समाज में अच्छा नहीं माना जाता परन्तु एक सभ्य और शिक्षित समाज में जीवन से जुड़े सभी पहलुओ पर विचार करना आवश्यक है|

भारत में भी अधिकतर देशो की तरह पुरुष प्रधान समाज रहा है, परन्तु पिछले दो दशको से विशेषतः शहरी क्षेत्रो में महिलाएं आगे आ रही है| अब महिलाएं भी खुल कर अपनी मांग समाज के आगे रखती है| आज से तीस वर्ष पहले भारत में कोई महिला Sexual incompatibility के कारण तलाक लेती थी, तो उसे समाज की निंदा का पात्र बनना पड़ता था| आज के आधुनिक युग में इस विषय पर खुल कर बात होनी आवश्यक है|

अब पछताय क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत

जब आप अपने लिए जीवन साथी चुनते है तो आप उसकी शिक्षा, परिवार, सुन्दरता और आर्थिक स्थिति को देख और परख सकते है परन्तु काम इच्छाएं बहुत ही निजी पहलु है जिसका पता अधिकतर शादी के बाद ही चलता है | तब तक बहुत देर हो चुकी होती है|

ज्योतिष एक ऐसा शास्त्र है जो आपको व्यक्तिगत जानकारी दे सकता है| यदि ज्योतिषी अनुभवी और शिक्षित हो तो वह आपको ऐसी जानकारी दे सकता है जो शायद व्यक्ति को स्वयं भी ना पता हो | आइये अब देखते हम कैसे कुंडली देखकर व्यक्ति की काम उत्तेजना देख सकते हैं :-
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काम सम्बन्ध और द्वादश भाव

कुंडली में 12वां भाव शैया सुख को दर्शाता है| पति पत्नी के बीच मैथुन सम्बन्ध को द्वादश भाव दर्शाता है | भिन्न भिन्न ग्रहों का द्वादश भाव में होने से निम्नलिखित परिणाम होता है :

सूर्य – ज्योतिष शास्त्र अनुसार सूर्य अलगाव वादी ग्रह है| यदि द्वादश भाव में सूर्य हो तो पति पत्नी में रात के समय टकराव की स्थिति बनती है| सम्बन्ध स्थापित करते समय दोनों साथियों में से एक मालिक की तरह दुसरे को हुक्म देता है| मैथुन क्रिया महीने में 2-3 बार ही होती है|

उपाय – शयन कक्ष में अहंकार की बातें नहीं करें|

चन्द्र – चन्द्र मन का कारक है| यदि द्वादश भाव में है तो व्यक्ति की बहुत सी कामुक इच्छाएं होती है| अत्यधिक मैथुन की सोच के कारण व्यक्ति की इन्द्रियाँ क्षीण होती है| साथी और आप में मधुर सम्बन्ध होते है| सप्ताह में 2 या इससे अधिक बार मैथुन की संभावना होती है|

मंगल – ज्योतिष अनुसार मंगल ऊर्जा का प्रतीक है| मैथुन क्रिया में उग्रता रहती है| आव़ाज अधिक करते है| मैथुन क्रिया में अलग अलग आसन और तरीको को इस्तेमाल करने में पीछे नही हटते है|ऊर्जा अधिक होती है, स्नेह कम होता है| इस भाव में मंगल हो तो व्यक्ति मांगलिक भी कहलाता है|

बुध – बुध नपुंसक ग्रह है| बुध द्वादश में हो तो व्यक्ति सम्बन्ध के समय हंसी मजाक और माहौल को हल्का रखता है|

नाम बड़े और दर्शन छोटे—-

पूरे दिन कामुक बातें कर सकता है परन्तु सम्बन्ध के समय शीघ्रता रहती है| आप कह सकते है की यदि बुध द्वादश में हो तो
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व्यभिचारिणी योग :-

यह योग बहुत घातक होता है। क्योकि व्यभिचार सारे अनर्थों की जड़ है। इसके कारण कुल अथवा परिवार की मर्यादा और यश का सर्वनाश हो जाता है। इस योग से भरे पूरे परिवार का सफाया हो जाता है। इसलिए स्त्री की कुंडली में यदि ये योग हो तो विवाह नही करना चाहिए।
—-यदि कुंडली में सप्तम भाव में कर्क राशि में सूर्य व मंगल हो तो लड़की व्यभिचारिणी होती है तथा इस योग से वह खुद के जीवन कओ नष्ट कर लेती है।
——मेष , वृश्चिक , मकर , अथवा कुम्भ , राशि का लग्न हो और उसमे शुक्र व चन्द्रमा दोनों ही बैठें हो तथा इन पर पापी ग्रह की दृष्टि हो तो लड़की के साथ उसकी माता भी व्यभिचार करती है।
—-चन्द्र ,मंगल , व शुक्र , तीनों अथवा इनमे से कोई दो ग्रह यदि सप्तम भाव में हो तो लड़की चरित्रहीन होती है।
—-मंगल व शुक्र यदि एक दूसरे के नवांश में हो तो स्त्री व्यभिचारिणी होती है।
——अगर मंगल का त्रिशांश कुंडली में हो तो स्त्री दबंग, पति को वश में रखने वाली, स्वेच्छाचारिणी, पुरुषवत् आचरण करने वाली तथा पति से हमेशा द्वेष रखने वाली होती है। अगर शनि का त्रिशांश हो तो स्त्री दरिद्र, उम्र से अधिक दिखने वाली, परपुरुष गामिनी एवं सौभाग्यहीन मानी जाती है। अगर बुध का त्रिशांश हो तो स्त्री कपट करने वाली, गूढ़ मन वाली तथा दूसरों पर डोरे डालने वाली होती है। शुक्र के त्रिशांश के चारित्रिक चंचल, परपुरुष की कामना करने वाली और गुरु के त्रिशांश वाली स्त्री सौभाग्यशाली, पुत्रवती एवं भाग्यवान होती है।
—–तुला या वृष लग्न में शनि का नवांश हो तथा उस पर शुक्र अथवा शनि की दृष्टि हो तो स्त्री अप्राकृतिक तरीके से अपनी कामवासना को शांत करती है।
——यदि शनि व शुक्र एक दूसरे के नवांश में हो और एक दूसरे को देखते हो तो भी ये उपरोक्त फल होता है।
—-यदि मंगल व शनि एक दूसरे के नवांश में हो तो स्त्री गलत कर्मों से धन अर्जित करती है।
—–अगर स्त्री की कुंडली में लग्र या चंद्रमा से सप्तम भाव ग्रहरहित या निर्बल हों तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो वह स्त्री डरपोक स्वभाव वाले, दब्बू एवं कामचोर पुरुष की पत्नी बनती है। सप्तम में बुध या शनि हों तो उस स्त्री का पति अन्य स्त्रियों से शारीरिक संबंध रखने वाला, कम संतान वाला तथा परदेश में रहने वाला होता है। अगर सप्तम भाव में चरराशि हो या सप्तमेश चरराशि से नवांश हो गया हो तो उस स्त्री का पति निश्चित रूप से परदेश में रहने वाला ही होता है।
—-यदि लग्न चन्द्र व लग्नेश तीनों ही चर राशि में हो तथा उन्हें कोई पापी ग्रह देखता हो तो वह स्त्री विवाह से पहले ही अनेक पुरुषों से सम्बन्ध रखती है जो विवाह के बाद भी रहते है।
—-यदि लग्न व चन्द्र दोनों ही चर राशि में हो और कोई बली पाप ग्रह किसी केंद्र में हो तो वह स्त्री कामवासना से ग्रसित होकर दुराचार करती है।
—जिस कन्या की कुंडली में सातवें भाव में राहु अथवा केतु हो तथा सप्तमेश पापी ग्रहों के साथ तथा सप्तम भाव पर भी पापी ग्रह की दृष्टि हो तो वह स्त्री किसी मजबूरी में अथवा बुरी संगत में आकर गलत कार्य करती है।
—स्त्री की कुंडली के सप्तम में सूर्य हो तो स्त्री का पति से संबंध-विच्छेद तथा मंगल हो तो विधवा का योग बनता है। अगर सप्तमस्थ शनि को कोई पाप ग्रह देख रहा हो तो कन्या का विवाह या तो बहुत विलम्ब से होता है या फिर होता ही नहीं। अगर सप्तम में सभी पाप ग्रह हों तो स्त्री विधवा, शुभ एवं अशुभ दोनों ही हो तो दूसरा पति पाने वाली, सप्तम में चंद्र, शुक्र एवं मंगल हों तो पति की इच्छा से पर पुरुष सम्पर्क रखने वाली होती है।
—यदि शुक्र से सातवें भाव में मंगल या सूर्य दोनों हो तो स्त्री गुप्त रूप से अन्य पुरुष से सम्बन्ध रखती है।
—-आठवें भाव में सूर्य और सातवें भाव में शुक्र हो तो स्त्री वेश्या बनती है।
—-शुक्र व मंगल एक दूसरे की राशि में हो तो भी स्त्री दुराचार ही अपनाती है।
—-किसी केंद्र भाव में पापी ग्रह के साथ मंगल हो तो वह स्त्री स्वसुख के लिए अन्य पुरुष से सम्बन्ध बनाती है।

विशेष :- प्राचीन शास्त्रो में इस प्रकार के व्यभिचार के योग दिए गए है। परन्तु यह अंतिम निर्णय नही है। इसके अतिरिक्त कुंडली में अन्य योगो का सूक्ष्म विचार करके ही अंतिम निर्णय पर पहुँचना चाहिए।

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