वास्तु शास्त्र क्या है
वास्तु शास्त्र क्या है ? What Is Vastu Shastr
सृष्टि में होने वाली घटनाएँ अनायास ही घटित नहीं होती है बल्कि इनके पीछे सृष्टि के नैसर्गिक नियम कार्य करते है | ऐसे कुछ निश्चित नियम और सिद्धांत हैं, जो कि बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को तो नियंत्रित करते ही है साथ ही हमारे मानव जीवन के सारे अनुभवों, परिस्थितियों और जीवन में होने वाली घटनाओं को भी नियंत्रित करते है | वास्तु शास्त्र ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण और बेहद प्रभावशाली नियमों पर आधारित विज्ञान है जिसे तार्किक दृष्टिकोण से समझे जाने की आवश्यकता है | इस लेख में हम वास्तु शास्त्र से सम्बंधित निम्न मुद्दों पर चर्चा करेंगे –
1- वास्तु शब्द का शाब्दिक अर्थ
2- वास्तु शब्द का साहित्यिक अर्थ
3- वास्तु शास्त्र का उद्भव
4- वास्तु शास्त्र पर लिखित प्रमुख साहित्य
5- वास्तु शास्त्र के अनिवार्य अंग
6- वास्तु शास्त्र का आपके जीवन पर सकारात्मक व नकारात्मक्र प्रभाव –
7- वास्तु कैसे कार्य करता है -
- पृथ्वी एवं उर्जा का प्रवाह
- भूखंड आकार एवं उर्जा
- वास्तु और उर्जायें
8- वास्तु शास्त्र के तीन महत्वपूर्ण नियम -
- स्थान
- काल (समय)
- पात्र (व्यक्ति)
9- वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का आधार -
- त्रिगुण और वास्तु शास्त्र
- पंच तत्व और वास्तु शास्त्र
- आठ दिशाएं और वास्तु शास्त्र
- नौ ग्रह और वास्तु शास्त्र
- 16 जोन और वास्तु शास्त्र
- 32 पद और वास्तु शास्त्र
- 45 उर्जा क्षेत्र
10- वास्तु और जियोपैथिक स्ट्रेस -
- हार्ट्मैन ग्रिड
- करी ग्रिड
1- वास्तु का शाब्दिक अर्थ –
वास्तु शब्द के दो अर्थ हैं –
पहला अर्थ – वह जगह जहाँ लोग रहते है | यानि की वे सभी स्थान, जहाँ मनुष्य निवास या कार्य करता है |
दूसरा अर्थ – वस्तुओं का अध्ययन भी वास्तु शास्त्र कहलाता है |
2- वास्तु शब्द का साहित्यिक अर्थ –
वेद –
वेदों की ऋचाओं में ‘वास्तु’ को गृह निर्माण के योग्य उपयुक्त भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है |
समरांगण सूत्रधार –
वास्तु के प्राचीनतम ग्रन्थों में से एक समरांगण सूत्रधार के अनुसार ‘वास्तु’ शब्द ‘वसु’ या प्रथ्वी से उत्पन्न है | पृथ्वी को मूलभूत वास्तु माना गया है और वे सभी रचनाएँ जो पृथ्वी पर स्थित हैं उनको भी वास्तु कहा जाता है |
मयमतम –
मयमतम चार प्रकार की वास्तु का उल्लेख करता है :– पृथ्वी, मंदिर, वाहन, और आसन
इन चारों में भी पृथ्वी मुख्य है |
3- वास्तु शास्त्र का उद्भव –
वास्तु शब्द का उद्भव संस्कृत के ‘वास’ से हुआ है | वास का अर्थ होता है रहने का स्थान | और इसी ‘वास’ से बने है दो अन्य शब्द – ‘आवास’ और ‘निवास’ |
भवन निर्माण के विज्ञान के रूप में प्रचलित वास्तु शास्त्र का पहला उल्लेख उपलब्ध लिखित साहित्य की दृष्टि से आज से कई हज़ार साल पहले रचित वेदों में मिलता हैं | उस समय वास्तु के विज्ञान की जानकारी समाज के कुछ लोगों तक ही सीमित थी और वे लोग इस ज्ञान को अपने उतराधिकारी के जरिये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाते थे | शुरुआत में वास्तु के सिद्धांत मुख्यत: इस बात पर आधारित थे की सूर्य की किरणें पूरे दिन में किस स्थान पर किस तरह का असर करती है | और इसका अध्ययन करने पर जो नतीजे निकले उन सिद्धांतो ने आगे चलकर वास्तु के अन्य नियमों के विकास की आधारशिला रखी |
उस समय के बाद से मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ वास्तु विज्ञान ने भी बहुत विकास किया है | तो यह कहा जा सकता है की वास्तु शास्त्र के वर्तमान सिद्धांत हजारों सालो के विकास का परिणाम है | तो जहाँ वेद वास्तु के उद्भव के स्थान के रूप में जाने जाते है वही वास्तु शास्त्र का प्रणेता विश्वकर्मा को माना जाता है जिन्होंने 'विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र' नामक ग्रन्थ की रचना की थी | हालाँकि विधिवत रूप से ग्यारहवी शताब्दी में ही वास्तु शास्त्र अस्तित्व में आया जब महाराजा भोजराज द्वारा ‘समरांगण सूत्रधार’ नामक ग्रन्थ लिखा गया, जिसे वास्तु शास्त्र का प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है |
वास्तु शास्त्र मूल रूप से वेदों का ही एक हिस्सा रहा है | गौरतलब है कि हमारे चार वेदों के अलावा उपवेद भी लिखे गए हैं जिनमे से एक स्थापत्य वेद था| कालांतर में इसी उपवेद को आधार बनाकर वास्तुशास्त्र का विकास हुआ और इससे सम्बंधित कई साहित्य भारत के अलग अलग हिस्सों में लिखे गए | जैसे की दक्षिण भारत में मयमतम और मानासर शिल्प-शास्त्र की रचना हुई वही विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र की रचना उत्तर भारत में हुई |
प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में वास्तु के कई सिद्धांत मिलते है | ऋग्वेद में वास्तोसपति नामक देवता का भी उल्लेख वास्तु के सन्दर्भ में किया गया है | इसके अतिरिक्त अन्य कई प्राचीन ग्रंथो और साहित्यों में वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है जैसे की मत्स्य पुराण, नारद पुराण और स्कन्द पुराण और यहाँ तक की बौद्ध साहित्यों में भी इसका जिक्र होता है | ऐसा माना जाता है की गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को भवन निर्माण के सम्बन्ध में उपदेश भी दिए थे | बौद्ध साहित्यों में अलग-अलग प्रकार के भवनों का उल्लेख है | इन प्राचीन रचनाओं में स्कन्द पुराण काफी अहमियत रखता है | इसमें महानगरो के बेहतर विकास और समृद्धि के लिए वास्तु के सिद्धांत बताये गए हैं | वही नारद पुराण में मंदिरों के वास्तु के अलावा जलाशयों जैसे कि झील, कुएं, नहरें आदि किस दिशा में होनी चाहिए, घरों में पानी के स्त्रोत किस दिशा में होने चाहिए इस सम्बन्ध में जानकारी मिलती है |
4- वास्तु शास्त्र पर लिखित प्रमुख साहित्य –
आधुनिक इतिहासकार जेम्स फ़र्गुसन, डॉ. हैवेल और सर कनिंघम के द्वारा किये गए शोध के अनुसार वास्तु शास्त्र का ऐतिहासिक विकास 6,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व के बीच हुआ था | वास्तु शास्त्र के उद्भव और विकास से सम्बंधित लिखित प्रमाण चारों वेदों, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र, पुराणों, वृहत्संहिता, बौद्ध और जैन ग्रन्थों में पर्याप्त मात्र में मिलते है | आइये नजर डालते है वास्तु शास्त्र पर लिखे कुछ ऐतिहासिक साहित्यों पर –
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